उम्र खर्च हो गया
विशेषज्ञ सोचे-समझे,
बहुत पैसे कमाने के लिए,
धनी आज बहुत हैं।
रखने की जगह नहीं,
बस चुप हो गया।
वक़्त ही नहीं मिला संभालें,
जैसे भी थे, कुछ तो करीब थे।
कम अमीर थे,
लेकिन दिल से अनमोल थे,
तब शायद हम खुशनसीब थे।
©रेखा
जीवन में बिखरे धूप के टुकड़े और बादल कि छाँव के तले खुली और बंद आँखों से बहुत कुछ देखा , अंतर के पटल पर कुछ अंकित हो गया और फिर वही शब्दों में ढल कर कागज़ के पन्नों पर. हर शब्द भोगे हुए यथार्थ कीकहानी का अंश है फिर वह अपना , उनका और सबका ही यथार्थ एक कविता में रच बस गया.
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