वो मेरी बहुत
घनिष्ठ और आत्मीय
अचानक एक दिन खो बैठी
अपने जीवन साथी को।
अवाक् और हतप्रभ खामोश हो गई।
जब पहुँची उसके सामने तो
सदमे में घिरी
उदास और बेपरवाह सी बैठी थी।
मुझे देख चहक कर बोली-
तुम्हें वो बहुत इज़्ज़त देते थे, कभी बात नहीं टाली
एक फोन किया नहीं कि पहुँच गये,
ए सुनो मुझे उनसे मिलना है,
तुम्हें मिले तो कह देना
मैंने बुलाया है।
तुम्हारी बात टालेंगे नहीं।
कहोगी न, कहोगी न!
फिर फफक फफक कर रो पड़ी,
मैं देखती रह गई,
मेरे पास उसको समेटने के सिवा कुछ न था।
2 टिप्पणियां:
मर्म को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
ऐसे पल बड़े भारी होते हैं।
सादर
ओह , मार्मिक ।
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