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रविवार, 8 सितंबर 2013

माँ तेरी भावना !

माँ हर थाली में
तूने तो बराबर प्यार परोस
फिर क्यों
तेरे ही बेटे
दूसरे की भरी और अपनी खाली
देख रहे हैं थाली
उनकी नज़रों का धोखा है
या फिर
मन में रही भावना जैसी
ममता तेरी उमड़ रही है
अपने हर बेटे पर
पर ये बेटे क्यों
मैं ही क्यों?
मैं ही क्यों?
के नारे लगा रहे हैं
आज अशक्त जब है तू तो
इस घर से उस घर में
अपनी झोली फैला रही है
तेरी ही बहुएँ आज
अपनी संतति को
फिर उसी प्यार से खिला रही है
तेरे लिए उनके घर में
कुछ भी नहीं बचा है
तेरे बेटे उसके पति हैं
उसके बच्चे भी उसके हैं
पर ये तो बतला दे
तेरा भी कोई है या
फिर तू अकेली ही आई थी
रही अकेली , जी अकेली  
अब मरने को बैठी है अकेली
कहाँ गयी ममता की थाली
जिसमें भर कर हलुआ
तुमने इनको खिलाया था
आज वही हलुआ ढक कर
अपने बच्चों को खिलाती हैं
तेरा क्या होगा माँ?

5 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

तेरा भी कोई है या
फिर तू अकेली ही आई थी।
रही अकेली , जी अकेली
अब मरने को बैठी है अकेली।

....आज का कटु यथार्थ...बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

Pallavi saxena ने कहा…

जाने क्या होगा...वर्तमान हालातों का सही नक्शा खींच दिया आपने...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

गजब की रचना है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

न जाने माँ क्यों अकेली हो जाती है .... भाव पूर्ण अभिव्यक्ति

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर,कटु यथार्थ,मर्मस्पर्शी रचना.