दीवार
शब्द वही
बस स्वरूप में
उसके अर्थ बदल जाते हें।
दीवार जब
बन जाती है
किसी छत का सहारा ,
तो
कितनी जिन्दगी उसके नीचे पलती हैं।
वो घर का एक अंश बन जाती है।
लेकिन जब ये दीवार
किसी आँगन के बीच खड़ी होती है,
बाँट देती है --
किसी घर के लोगों को
और दो घर बना देती है।
अगर यही दीवार
खिंच जाती है
अनदेखी से स्वरूप में
वह दिलों में
अपनी जगह बना लेती है ,
तो फिर
क्या सहोदर,
क्या सहोदरा,
माँ -बाप और बेटे
तक के
रिश्ते में आकर
एक अनदेखा बंटवारा कर जाती है
कि फिर ये कभी गिरती ही नहीं है।
दो इंसान
एक घर में सही
इस दीवार के रहते
हंसते भी है,
एक दूसरे के सामने होते भी है
लेकिन
वो खून के रिश्ते को
चला नहीं रहे होते
बस ढो रहे होते हें।
ईंट गारे की दीवार तो
फिर भी गिर सकती है
पर ये दीवार
कभी गिरती नहीं है।
वक्त इसको और मजबूत कर जाता है।
ये दीवार की कहानी है।
तेरी और मेरी जुबानी है।
शनिवार, 14 अप्रैल 2012
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11 टिप्पणियां:
एक दीवार - कितने अर्थ समेटे होती है , बांधती है , सुरक्षा देती है ..... और अलगाव के बीज भी बो जाती है
शब्दों के अर्थ वैविध्य को जीवन की वास्तविकताओं का ध्वन्यार्थ इस रचना की उपयोगिता और महत्व को कई गुणा बढ़ा देता है. अद्भुत भाव प्रेषण क्षमत से युक्त संजोने वाली रचना. आभार.
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
behad khoobsurti se likha hua.....
दीवार पर सटीक वार।
दीवार के रंग जिन्दगी जैसे ही स्याह और सफेद है
आभार्
दिवार घर की हो या दिलों की, बाँटती ही है
दीवार छट देती है तो बाँट भी देती है .... सुंदर प्रस्तुति
क्या बात है...अद्भुत!
बहुत खूब .. प्रत्यक्ष दीवारों से अप्रत्यक्ष दीवारों ने बाटने का काम ज्यादा किया है
बहुत खूब सार्थक अभिव्यक्ति ....
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