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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

सिर्फ आज जिया है!

विदा गुजरे साल को
सब दे रहे हैं।
गुजर रहे हैं
साल-दर-साल
सिर्फ रात औ' दिन के चक्र में
न कल देखा,
न देखेंगे।
सिर्फ आज औ' आज
अपना है।
और इसी आज को जी सकते हैं।
कुछ बदला है तो
वक़्त के हिसाब से
कलैंडर और तारीख बदलती है।
तस्वीरे पुरानी और धुंधली होती हैं।
उतारकर नयी लग जाती हैं।
तस्वीरों में
बदलते चेहरे के अक्स
गुजरे सालों का हिसाब देते हैं।
बाद में -
क्या खोया - क्या पाया
बस यही
हिसाब शेष रह जाता है।
बस इसी तरह से
एक और साल गुजर जाता है.

5 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

क्या खोया - क्या पाया
बस यही
हिसाब शेष रह जाता है।
बस इसी तरह से
एक और साल गुजर जाता है. सही कहा आपने साल लम्हे इसी तरह से गुजर जाते हैं

रंजना ने कहा…

BAHUT SAHI KAHA....BHAVUK AUR SUNDAR ABHIVYAKTI.....

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

क्या खोया क्या पाया
इसी गुनताड़े में साल गुजर जाता है .
आपकी कविता अच्छी लगी .

Udan Tashtari ने कहा…

सही कहा आपने...

--


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

दिन को कभी कोई रोक नही पाय है यह इसी तरह बीतते जाएँगे और दे जाएँगे कुछ खट्टी-मीठी यादें..बस उन्ही खूबसूरत यादों के साथ इस वर्ष को बिदाई दी जाय..नए साल की अग्रिम हार्दिक बधाई..