हे विधाता
ये काल चक्र कैसा है?
धरती और आकाश सभी से तूने मृत्यु रची है।
किसके किसके घर उजड़े हैं?
किसके टूटे है परिवार?
कौन धरा पर तड़प रहा है
कैसा है किसका व्यवहार ?
नहीं दया आती है तुझको
मानव के जीवन पर
कभी गगन से ,
कभी धरा से,
कोई आदि अंत नहीं है
पूरा विश्व जलता अग्नि में
और किसी को ले गया तूफान।
जल ने मारा, अग्नि ने मारा,
कहीं मारता है आकाश,
कहीं धरा ले रही है प्राण,
कहीं महामारी का त्राण ।
भेजी तूने मृत्यु की पाती
किसे मिली है किसे नहीं
फिर भी सब बने काल का ग्रास
हो रहा है जन जीवन का ह्रास ।
कौन रहेगा , कौन बचेगा?
इसका भी है नहीं कोई भान ।
वो भी नहीं रहा सुरक्षित
जो करते रक्षणका काम,
सेवा करने वालों की टूट रही है साँस
ऐसे जग में क्या होगा जीकर
जहाँ मची हो त्राहिमाम ।
कोई आदि और अंत नहीं है
निर्दोषों के प्राण गए हैं ।
दोषी बैठे हैं महलों में,
लिए करोड़ों का वरदान ।
मानव ने मानव के बीच में खींची है लंबी रेखा ।
मिले कभी ना यह मानवता ऐसा कभी न पहले देखा।
ये काल चक्र कैसा है?
धरती और आकाश सभी से तूने मृत्यु रची है।
किसके किसके घर उजड़े हैं?
किसके टूटे है परिवार?
कौन धरा पर तड़प रहा है
कैसा है किसका व्यवहार ?
नहीं दया आती है तुझको
मानव के जीवन पर
कभी गगन से ,
कभी धरा से,
कोई आदि अंत नहीं है
पूरा विश्व जलता अग्नि में
और किसी को ले गया तूफान।
जल ने मारा, अग्नि ने मारा,
कहीं मारता है आकाश,
कहीं धरा ले रही है प्राण,
कहीं महामारी का त्राण ।
भेजी तूने मृत्यु की पाती
किसे मिली है किसे नहीं
फिर भी सब बने काल का ग्रास
हो रहा है जन जीवन का ह्रास ।
कौन रहेगा , कौन बचेगा?
इसका भी है नहीं कोई भान ।
वो भी नहीं रहा सुरक्षित
जो करते रक्षणका काम,
सेवा करने वालों की टूट रही है साँस
ऐसे जग में क्या होगा जीकर
जहाँ मची हो त्राहिमाम ।
कोई आदि और अंत नहीं है
निर्दोषों के प्राण गए हैं ।
दोषी बैठे हैं महलों में,
लिए करोड़ों का वरदान ।
मानव ने मानव के बीच में खींची है लंबी रेखा ।
मिले कभी ना यह मानवता ऐसा कभी न पहले देखा।
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