तट पर बैठो सुनो जरा ,
हर नदिया कुछ गाती है ।
कल कल करती जल की धारा
रुक कर ये एक बात बताती है।
हर नदिया कुछ गाती है ।
कल कल करती जल की धारा
रुक कर ये एक बात बताती है।
तट पर बैठो सुनो जरा
हर नदिया कुछ गाती है ।
हर नदिया कुछ गाती है ।
निर्मल मन रख जब करना तुम ,
अर्पण हो या तर्पंण शांति लाती है।
तट पर बैठो सुनो जरा
हर नदिया कुछ गाती है ।
लहरों में उसके संगीत बसा है।
सदियों से इतिहास दिखाती है ।
तट पर बैठो सुनो जरा
हर नदिया कुछ गाती है ।
हर नदिया कुछ गाती है ।
गंगा, यमुना , गोदावरी ,नर्मदा,
अपने जग में नाम बताती है।
तट पर बैठो सुनो जरा,
हर नदिया कुछ गाती है ।
बैठ किनारे खोलो मन की गाठें ,
दर्शन प्राणिमात्र को सिख़ाती है ।
तट पर बैठो सुनो जरा
हर नदिया कुछ गाती है ।
हर नदिया कुछ गाती है ।
समझ सको तो समझ लो जल का,
जीवन में हमें मोल समझाती है।
तट पर बैठ सुनो जरा,
हर नदिया कुछ गाती है ।
वाह बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआभार सरिता !
हटाएंरेखा जी, आपने नदियों की व्यथा बहुत ही सुन्दर शाब्दिक अर्थ दिया है l
जवाब देंहटाएंhttps://yourszindgi.blogspot.com/2020/04/blog-post_74.html
आभार ब्लॉग पर आने के लिए। ।
हटाएंनदी का सुन्दर संदेश व्यक्त कर दिया आपने .
जवाब देंहटाएंआभार प्रतिभा जी ।
हटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंवाह!! बहुत सुंदर और प्रांजल कविता!!!!
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी ख़ुशबू समेटे ... समाज देश की संस्कृति से जुड़ी नदी बहुत कुछ कहती है हमेशा ... सुंदर रचना ।..
जवाब देंहटाएंनदिया अपनी कलकल से गूढ़ रहस्य समझाती है
जवाब देंहटाएंवाह!!!
लाजवाब।
वाह! बहुत सुन्दर और मनभावन रचना, बधाई रेखा जी.
जवाब देंहटाएंइस समय वाकई नदियाँ गा रहीं हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेरक रचना
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