जीवन में बिखरे धूप के टुकड़े और बादल कि छाँव के तले खुली और बंद आँखों से बहुत कुछ देखा , अंतर के पटल पर कुछ अंकित हो गया और फिर वही शब्दों में ढल कर कागज़ के पन्नों पर. हर शब्द भोगे हुए यथार्थ कीकहानी का अंश है फिर वह अपना , उनका और सबका ही यथार्थ एक कविता में रच बस गया.
सामयिक हाइकु। अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसामयिक और सटीक | कितनी कमाल की शैली और विधा है ये दीदी |
जवाब देंहटाएंआते रहे।
हटाएंसटीक लिखा है ----
जवाब देंहटाएंसामयिक और सुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंवाह दीदी ! कितना अच्छा लिखा है। मैंने जैसे ही पढा तुरंत दोनों बच्चो को सुनाया। इस शैली में लिखने की मुझे आपसेट्रेनिंग लेनी है।
जवाब देंहटाएं