तेरी आवाज सुनी तो सुकून आया दिल को,
वर्ना तुझे देखे हुए तो जमाना गुजर गया।
कभी गूंजती थी किलकारियां इस आँगन में,
वर्षों गुजर चुके है इसमें अब सन्नाटा पसर गया।
कभी गुलज़ार थी ये इमारत भी जिन्दगी से,
अब गुजरता ही नहीं है मानो वक़्त ठहर गया।
बसाया था ये घर दो से फिर हम चार हुए,
फिर दो में सिमट गए तो दिल सिहर गया।
आशियाँ तो बनाया था तेरे ही लिए मैंने,
जिन्दगी पले इसमें ये ख़्वाब ही बिखर गया।
वर्ना तुझे देखे हुए तो जमाना गुजर गया।
कभी गूंजती थी किलकारियां इस आँगन में,
वर्षों गुजर चुके है इसमें अब सन्नाटा पसर गया।
कभी गुलज़ार थी ये इमारत भी जिन्दगी से,
अब गुजरता ही नहीं है मानो वक़्त ठहर गया।
बसाया था ये घर दो से फिर हम चार हुए,
फिर दो में सिमट गए तो दिल सिहर गया।
आशियाँ तो बनाया था तेरे ही लिए मैंने,
जिन्दगी पले इसमें ये ख़्वाब ही बिखर गया।