रविवार, 1 मई 2011

नदी के किनारे !

नदी के दो किनारे
दूर से देखते हैं
एक दूसरे को
' जुड़े भी हैं
बीच में बहते हुए पानी से
किन्तु
जब भी मिलने की सोची
करीब आना चाहा
नदी बीच से हट गयी
तो वे दो किनारे ही रहे
एक सूखा मैदान
जिसकी कोई पहचान नहीं होती
वापस हट लिए
नदी के किनारे ही सही
हम जुड़े तो हैं
पानी के एक रिश्ते से ही सही
हमारी पहचान तो है
एक किवदंती है
नदी के दो किनारे
कभी इक नहीं होते हैं
चलते हैं साथ साथ
युगों तक निरंतर
तभी वे
अपनी पहचान नहीं खोते

5 टिप्‍पणियां:

  1. नदी के दो किनारों को सेतु की आवश्यकता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. नदी का पानी किनारों को स्नेह बंधन में बांधे रखता है . सुँदर कविता .

    जवाब देंहटाएं
  3. मनोज जी,

    सेतु तो हमें दोनों किनारे तक पहुँचाने के लिए होता है वे किनारे तो सदा दूर दूर ही रहते हैं. उनके दर्द को समझता नहीं कोई.

    जवाब देंहटाएं