बुधवार, 18 मई 2011

चार लाइने !

इस को लिखने बैठी तो फिर इससे ज्यादा लिख ही नहीं पाई क्योंकि ये एक उत्तर था किसी के प्रश्न का और जितना बड़ा प्रश्न उनता ही तो उत्तर होता है।

अपने को मैंने बहुत पहले ही पढ़ लिया है

तभी तो जिन्दगी को इस तरह गढ़ लिया है,

अब क्या सुनाएँ दोस्त दास्ताने जिन्दगी,

वक़्त के पहले ही खुद सूली पर चढ़ लिया है


* * * * * *

ये कामना ही मेरी भगवान से,

जियें जब तक जियें सम्मान से,

दूर ही रखे वो मुझे अभिमान से,

मूल्य प्रिय हों सभी को जान से

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इन चार पंक्तियों में बसी कामना ही तो मनुष्य को इन्सान बनाती है और यदा-कदा ईश्वरत्व भी प्रदानकर देती है.जीवन के लिए अमूल्य एवं मार्गदर्शी पंक्तियाँ .

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  2. गागर नें सागर है ये चार लाइनें!

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  3. कम हैं तो क्या गम हैं ..सुन्दर तो बहुत हैं.

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  4. दोनों मुक्तक सुन्दर भाव से गढे हैं

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  5. चार लाइनो मे पूरी ज़िन्दगी गढ दी है …………इन्सान इन्सान बन कर ही रह जाये तो काफ़ी है।

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  6. @ manoj ji ne sahi kaha
    गागर नें सागर है ये चार लाइनें!

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  7. जीवन के लिए अमूल्य एवं मार्गदर्शी पंक्तियाँ|धन्यवाद|

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  8. aapke mukatak .bahut kam shabdon main bahut kehne ki kshmata liye hue hain..bahut khoob.

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