अपने को मैंने बहुत पहले ही पढ़ लिया है
तभी तो जिन्दगी को इस तरह गढ़ लिया है,
अब क्या सुनाएँ ए दोस्त दास्ताने जिन्दगी,
वक़्त के पहले ही खुद सूली पर चढ़ लिया है।
तभी तो जिन्दगी को इस तरह गढ़ लिया है,
अब क्या सुनाएँ ए दोस्त दास्ताने जिन्दगी,
वक़्त के पहले ही खुद सूली पर चढ़ लिया है।
* * * * * *
ये कामना ही मेरी भगवान से,
जियें जब तक जियें सम्मान से,
दूर ही रखे वो मुझे अभिमान से,
मूल्य प्रिय हों सभी को जान से।
जियें जब तक जियें सम्मान से,
दूर ही रखे वो मुझे अभिमान से,
मूल्य प्रिय हों सभी को जान से।
in chaar linon me bahut kuch hai
जवाब देंहटाएंआपकी इन चार पंक्तियों में बसी कामना ही तो मनुष्य को इन्सान बनाती है और यदा-कदा ईश्वरत्व भी प्रदानकर देती है.जीवन के लिए अमूल्य एवं मार्गदर्शी पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएंगागर नें सागर है ये चार लाइनें!
जवाब देंहटाएंकम हैं तो क्या गम हैं ..सुन्दर तो बहुत हैं.
जवाब देंहटाएंदोनों मुक्तक सुन्दर भाव से गढे हैं
जवाब देंहटाएंचार लाइनो मे पूरी ज़िन्दगी गढ दी है …………इन्सान इन्सान बन कर ही रह जाये तो काफ़ी है।
जवाब देंहटाएं@ manoj ji ne sahi kaha
जवाब देंहटाएंगागर नें सागर है ये चार लाइनें!
जीवन के लिए अमूल्य एवं मार्गदर्शी पंक्तियाँ|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंaapke mukatak .bahut kam shabdon main bahut kehne ki kshmata liye hue hain..bahut khoob.
जवाब देंहटाएं