कड़ी धूप और तपिश में
ऊपर देखते हुए
इसी तरह चलते रहना है
एक टुकड़े साए की तलाश में।
सूखते हलक औ'
पपड़ाये होंठों को
तर करने की चाहत सिमटी है,
इस खुले हुए नीले आकाश में।
भटक रही हैं निगाहें
दूर दूर तक
मिलेगा कोई दरिया
प्यास बुझाने के लिए
बढ़ रहे हैं कदम इसी विश्वास में।
रेगिस्तान की तपती रेत
सुखा देती है
आशा की बूंदों को
जिन्दगी ही तब्दील हो रही है
सांस चलती हुई इस जिन्दा लाश में।
रेगिस्तान की तपती रेत
जवाब देंहटाएंसुखा देती है
आशा की बूंदों को
जिन्दगी ही तब्दील हो रही है
सांस चलती हुई इस जिन्दा लाश में।
.......
bahut hi gahre ehsaas
सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .
जवाब देंहटाएंह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंkhubsurat kavitaa
जवाब देंहटाएंरेगिस्तान की तपती रेत
जवाब देंहटाएंसुखा देती है
आशा की बूंदों को
जिन्दगी ही तब्दील हो रही है
सांस चलती हुई इस जिन्दा लाश में।
अब क्या कहूँ इस पर्…………कितनी सरलता से सच बयाँ कर देती है आप्।
एक टुकड़े साये की तलाश ... बहुत खूबसूरती से लिखा है ..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
ये गीत जिन्दगी बयाँ करता हुआ प्रतीत होता है,जो मन के गहराई तक पहुँच कर गहरा असर करता है,वाह वाह बहुत अच्छा है, यह बात नही है, वाकई मेँ दिल को मन को प्राण को छू जाता है, रेखाजी,
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