शुक्रवार, 27 मई 2011

एक टुकड़े साए की तलाश


कड़ी धूप और तपिश में

ऊपर देखते हुए
इसी तरह चलते रहना है
एक टुकड़े साए की तलाश में

सूखते हलक '
पपड़ाये होंठों को
तर करने की चाहत सिमटी है,
इस खुले हुए नीले आकाश में

भटक रही हैं निगाहें
दूर दूर तक
मिलेगा कोई दरिया
प्यास बुझाने के लिए
बढ़ रहे हैं कदम इसी विश्वास में

रेगिस्तान की तपती रेत
सुखा देती है
आशा की बूंदों को
जिन्दगी ही तब्दील हो रही है
सांस चलती हुई इस जिन्दा लाश में

8 टिप्‍पणियां:

  1. रेगिस्तान की तपती रेत
    सुखा देती है
    आशा की बूंदों को
    जिन्दगी ही तब्दील हो रही है
    सांस चलती हुई इस जिन्दा लाश में।
    .......
    bahut hi gahre ehsaas

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  2. सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

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  3. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  4. रेगिस्तान की तपती रेत
    सुखा देती है
    आशा की बूंदों को
    जिन्दगी ही तब्दील हो रही है
    सांस चलती हुई इस जिन्दा लाश में।
    अब क्या कहूँ इस पर्…………कितनी सरलता से सच बयाँ कर देती है आप्।

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  5. एक टुकड़े साये की तलाश ... बहुत खूबसूरती से लिखा है ..सुन्दर रचना

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  6. लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  7. ये गीत जिन्दगी बयाँ करता हुआ प्रतीत होता है,जो मन के गहराई तक पहुँच कर गहरा असर करता है,वाह वाह बहुत अच्छा है, यह बात नही है, वाकई मेँ दिल को मन को प्राण को छू जाता है, रेखाजी,

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