इम्तिहान मेरे सब्र का कुछ
इस तरह तो मत लीजिये.
फूल तो मांगे नहीं मैंने,
काँटों की सजा तो मत दीजिये.
हर गम कुबूल मैंने कर लिया,
अश्कों पर तो मुझे हक दीजिये.
किस तरह झेलूँ तेरी ये बेरुखी,
आँखें बंद करने का वक्त तो दीजिये.
छुपा लूंगी सारे जख्मों को सीने में,
लम्हे लम्हे का हिसाब तो मत लीजिये.
कौन सा लम्हा किसकी अमानत हो?
इसको तो खुद तय मत कीजिये.
इम्तिहान मेरे सब्र का कुछ
इस तरह तो मत लीजिये.