रविवार, 21 जून 2020

जिंदगी रेत सी !

आज
जब मची हाहाकार
और लगता है ,
कि
हर एक जिंदगी
रह गई है
मुट्ठी भर रेत की तरह ।
बंद मुट्ठी में
कितने कण शेष हैं
अब नहीं पता है।
न उम्र , न काल, न साँसें
सब चुक रहीं हैं ,
बेवजह, बेवक़्त, बेतहाशा
हर दुआ, हर दवा मुँह छिपा रही है ।
हर कोई अकेला आया है
और अकेला ही जायेगा ।
आज सच हो गया है -
घर से ले गये अकेले औ'
वहाँ से लिपटे कफ़न में अकेले ही चले गये ।
आखिरी यात्रा में चार कदम भारी थे ।
कोई चल ही न पाया ।
और जाने वाले चले गये ।
पार्थिव के ढेर होंगे और श्मशान छोटे पड़ जायेंगे ,
ऐसा तो नहीं पढ़ा था किसी किताब में।
नयी इबारत लिखी जा रही है ,
कल के लिए इतिहास में
एक नया काल लिख जायेगा
जिसे कोरोना काल कहा जायेगा ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर और सार्थक पोस्ट दीदी ,सही बात है ,नमन

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  2. काल अगर आना चाहे तो कौन रोक सका है ... फिर इंसान ने तो उसके आने का रास्ता प्रशस्त किया है अपनी भूख के चलते ... सच है करोना काल बनेगा ये ...

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