शनिवार, 4 जुलाई 2020

शहीदों से ...!

वीरो तुम्हें
कैसे दूँ श्रद्धांजलि !
सीमा पर शहीद होते तो
फ़ख्र होता है ।
अभी तो
गद्दारों ने अपने ही देश में,
अपने अपराधों की फेहरिश्त में
और एक वारदात बढ़ा कर
क्या रुतबा बढ़ाया है ?
आँखे बरसती अगर
तुम्हारे बलिदान में ,
तो अंगारे भरे
दिल से कोसती उनको ,
जो वायस बने
कुछ अपने ही
तुम्हारी मौत के ।
श्रद्धांजलि तब देंगे
जब वे मारे जायेंगे ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सटीक शब्दों का चयन किया आपने | सरल और कितनी प्रभावी पंक्तियाँ | सच्ची श्रद्धांजलि तो यही है असल में

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  2. ठीक लिखा है ... ग़द्दारों के हाथों मरा जाना ... पर वो भी तो देश देश के दुश्मन हैं ... किए की सजा ऐसे ग़द्दारों को ज़रूर मिलेगी ... बलिदान व्यर्थ नहि जाएगा ...

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