लोग कहते हैं ,
हवेलियां मजबूत होती हैं ,
एक पीढ़ी उसको बनाती है
तो
दूसरी पीढ़ी उसको सजाती है ।
ये मैंने भी देखा है ,
साथ ही देखा है -
बड़ी बड़ी हवेलियों को दरकते हुए ,
भले ही ईंटें न बिखरें ,
छतें न दरकेंं
फिर भी दीवारों में दरारें आ ही जाती हैं।
बनने लगती है,
नयी दीवारें आँगन में,
बाँटने को पीढ़ियों के अंतर को।
कोई भी हवेली अखण्ड नहीं होती है,
वो बरगद या पीपल नहीं होती,
जो शाख-दर-शाख चलती ही रहे।
बीज भले दूर दूर तक जाकर उग आयें
हवेलियाँ कहीं नहीं जाती है।
एक दिन ढह जाती हैं
और खण्डहर बन सदियों तक भले पड़ी रहें।