शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

ऐसा भी घर !

 उस मकान से

कभी आतीं नहीं 

ऐसी आवाजें

जिनमें खुशियों की हो खनखनाहट।

खामोश दर,

खामोश दीवारें, 

बंद बंद खिड़कियाँ,

ओस से तर हुई छतें

शायद रोई हैं रात भर ।

कोई  इंसान भी नहीं 

हँसता यहाँ,

मुस्कानें रख दी हैं गिरवी। 

उनके यहाँ 

खुशियाँ ने भी

न आने की कसम खाई है।

शायद इसीलिए

हर तरफ मायूसी छाई है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना रेखा जी

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  2. आभार अभिलाषा जी मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन करने के लिए।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. हृदय स्पर्शी रचना।
    संवेदनाओं से ओतप्रोत।

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