मंगलवार, 8 जनवरी 2013

रक्तबीज और महाकाली !



मैं  "दामिनी "
तुम्हें चुनौती देती हूँ ,
मैंने अपना बलिदान दिया
या फिर तुमने
मुझे मौत के हवाले किया हो ,
तब भी मैं
अब हर उस दिल में
जिन्दा रहूंगी,
एक आग बनकर ,
जब तक कि 
इन नराधम , अमानुषों को
उनके हश्र तक न पहुंचा दूं।
सिर्फ वही क्यों?
उस दिन के बाद से
मेरी बलि के बाद भी
अब तक उन जैसे
सैकड़ों दुहरा रहे हैं इतिहास ,
वो इतिहास जो
मेरे साथ गुजरा था
रोज दो चार मुझ जैसी
मौत के मुंह में जाकर
या फिर
मौत सी यंत्रणा में
जीने को मजबूर हैं।
वे तो अभी दण्ड के लिए
एकमत भी नहीं है ,
और हो भी नहीं पायेंगे .
क्यों?
इसलिए की उनके अन्दर भी
वही पुरुष जी रहा है,
क्या पता
कल वही अपने अन्दर के
नराधम से हार जाएँ ?
और वह भी
कटघरे में खड़े होकर
उस दण्ड के भागीदार न हों।
अभी महीनों वे
ऐसे अवरोधों के चलते
और ताकतवर होते रहेंगे।
अब मैं नहीं तो क्या ?
हर लड़की इस धरती पर
महाकाली बनकर जन्म लेगी
और इन रक्तबीजों के
लहू से खप्पर भरकर
बता देंगी कि
अब वे द्रोपदी बनकर
कृष्ण को नहीं पुकारेंगी।
खुद महाकाली बनकर
सर्वनाश करेंगी।
इन रक्तबीजों के मुंडों की माला
पहन कर जब निकलेगी
तो ये नराधम
थर-थर कांपते हुए
सामने न आयेंगे .
हमें किसी दण्ड या न्याय की
दरकार होगी ही नहीं,
वे सक्षम होंगी
और समर्थ होंगी।
ये साबित कर देंगी।
ये साबित कर देंगी।

11 टिप्‍पणियां:

  1. न्याय करनेवाले?
    कहीं नहीं कोई .आप कह रही हैं वही होना है!

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  2. न्याय होगा ???
    आज का ये ज्वलंत प्रश्न है

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  3. आमीन!
    काश! ऐसा ही हो !
    बस! यही जज़्बा चाहिए, यही आग चाहिए ... हर नारी के भीतर की यही आवाज़ है !
    ~सादर!!!

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