सोमवार, 7 जनवरी 2013

सर्द इरादों से आगे !

सर्द दिन और सर्द रातों में
हौंसले सर्द नहीं  दिखते हैं ,
हम अड़े है उनके अंजाम पर
जो आज भी सर्द रातों में भी
 कांपते नहीं है गुनाह करने से.
हम भी अपने इरादों को अब
कमजोर कभी नहीं  पड़ने देंगे
उन्हें उनके गुनाहों की सजा
मुक़र्रर करवा कर ही दम लेंगे .
उनके आका गर ढल बन कर
खड़े हों तो क्या हमारी तलवारें
भय से अब टूटने वाली नहीं है।
उन जैसों का जुर्म सिर्फ एक सजा
मौत ही क्यों न हो नहीं मिटा  सकती  है ,
उन्हें सजा देने  के लिए क्या सोचें ?
तिल तिल मरने की सजा भी कम है।
 न  जाने कितनी "दामिनी " आज भी
तिल तिल मर कर जी रही हैं।
उन सबके गुनाहगार हाजिर हों
चाहे वे कोई भी क्यों न हो?
दंड तो उन्हें एक ही मिलेगा अब
वह न्याय अब उनकी  मर्जी से नहीं
हमारी मर्जी से  ही निर्णीत होगा .

4 टिप्‍पणियां:

  1. सर्द रातों की गर्माहट, इरादे साफ एवं सुंदर !

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  2. काश की ऐसा हो पाता ... अपनी मर्जी से ये उन्हें दे पाते ...
    पर इरादे तो सख्त रखने ही होंगे ...

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  3. काश के हम गुनहगारों को खुद सजा दे सकते तो कभी किसी दामिनी को यूं तिल तिल मरकर इंसाफ होने का इंतज़ार नहीं करना पड़ता।

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  4. गुनाहगार हाजिर हों
    चाहे वे कोई भी क्यों न हो?
    चाहे वे कोई भी क्यों न हो?
    -
    चौकीदार समझा जिसे वही शामिल, तो कैसे गुनाहगार हाजिर हों?

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