शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

हाइकू !

क़ानून तेरा 
मुझे क्या न्याय देगा ?
खुद करूगी।
*******'
चेहरे ढके 
क्या गुनाह छिपेगा ?
धिक्कारते हैं।
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मशालें जलीं 
ज्वालामुखी न बनें 
हदें जान लो।
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कैद कर दो,
सिफारिशे हो रही 
हदें जान लो। 
*******
हमारे लिए 
इतिहास की बात 
खुद खुदा हैं। 
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उड़ाते हैं वे 
कीचड हम पर 
सने खुद हैं।
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वे चाहते है  
हम भटक जाए 
इस जंग से .
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इस जंग में 
हौसले से लड़ना 
जीत हमारी।
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10 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक समसामयिक हाइकु ,नव वर्ष की बहुत बहुत बधाई

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (12-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  3. आत्मविश्वास एवं ओज से लबरेज़ दमदार हाईकू ! बधाई स्वीकार करें !

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  4. मशालें जलीं
    ज्वालामुखी न बनें
    हदें जान लो।
    *******
    कैद कर दो,
    सिफारिशे हो रही
    हदें जान लो।
    बेहद सशक्‍त भाव लिये सभी हाइकू ..

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