शनिवार, 14 जुलाई 2012

मौन और मौन !

मौन 
कर   जाता है 
अनर्थ 
सच सच   होकर भी 
मौन की गहराई में 
खामोश रह जाता है .
बात  अर्थ खो देती है 
सच का सफेद आवरण 
मौन के अँधेरे से 
धूमिल सा हो जाता है। 
भ्रम 
सच और झूठ के  बीच 
 इस तरह फैल जाता है 
कि 
सच को  अलग नहीं हो सकता ,
फिर  सब 
जो असत्य आरोपों के 
दावेदार  हैं  
जीत जाते  हैं।
ऐसा मौन या मर्यादा 
नीतिपरक नहीं 
या तो 
भयग्रस्त हैं 
या किसी 
अहसान का बदला 
लेकिन 
इस  जगह का मौन 
अगर तुम्हें ही  
दोषी बना दे  तो  
खोने  वाले भी तुम ही हो 
और पाने  (आरोप)  वाले भी तुम 
अगर मुंह नहीं खोल सकते हो 
तो मौन और मौन 
तुम्हारी  नियति है 
और  
आरोपों को मौन के साथ  ही 
जीते रहो ,
जलते रहो।

  

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सार्थक बात ..
    सुंदर प्रबल रचना ...

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  2. फिर सब
    जो असत्य आरोपों के
    दावेदार हैं
    जीत जाते हैं।
    ऐसा मौन या मर्यादा
    नीतिपरक नहीं
    या तो
    भयग्रस्त हैं

    सशक्त रचना

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  3. मौन रहे निर्दोष गर, दोष सिद्ध कहलाय ।

    अपराधी खुब जोर से, झूठे शोर मचाय ।

    झूठे शोर मचाय, सुने जो हल्ला गुल्ला ।

    मौन मान संकेत, फैसला देता मुल्ला ।

    पर काजी की पहल, शर्तिया करे फैसला ।

    मौन तोड़ ऐ सत्य, तोड़ मत कभी हौसला ।।

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  4. अर्थपूर्ण प्रस्तुति. सुन्दर.

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  5. बेहतरीन...मौन की आवाज सुनाई दी!!

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  6. बहुत सही कहा है आपने ...आभार

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