बुधवार, 17 अगस्त 2011

दोहरा सत्य !

वो दर्द का एक सैलाब दिल में लिए,
यूं ही सबकी ख़ुशी में मुस्कराती रही,
आँखों में बसी उदासी औ' नमी को ,
झुका कर नजरें दुनियाँ से छुपाती रही।

रोका उसे औ' झांक कर आँखों में उसकी,
एक दिन मैंने पूछ ही लिया उससे कि ,
क्यों तुम बाहर से खुश दिखने के लिये,
इस तरह अपनाकलेजा जलाती हो तुम?

छूते ही मर्म बह निकला दर्द शिद्दत से,
उमड़ते हुए गुबार उसमें सब बहने लगे,
हंसती हूँ तो लोग शामिल भी कर लेते हैं
रोई हूँ जब तक कतरा कर निकल गए।

ab to समझ ली है रीत दुनियाँ की,
गर उनकी ख़ुशी में हंसों तो ठीक है,
वो तुम्हारे ग़मों को बाँट कर कभी
तुम्हारे साथ रोने कोई नहीं आता।

14 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे साथ रोने कोई नहीं आता। ... jo aaya wahi sach hai, dohre satya se aansuon ka sailab badhta hai

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  2. छूते ही मर्म बह निकला दर्द शिद्दत से,
    उमड़ते हुए गुबार उसमें सब बहने लगे,
    हंसती हूँ तो लोग शामिल भी कर लेते हैं
    रोई हूँ जब तक कतरा कर निकल गए।

    बिल्‍कुच सौ फीसदी सच कहा है आपने ..आभार ।

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  3. बहुत ही अच्छे व प्यारे शब्द है।

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  4. मर्मस्पर्शी लेकिन कटु सत्य . आभार

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  5. बिल्‍कुच सौ फीसदी सच कहा है आपने ..आभार ।

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  6. सटीक है ...हंसी में सब साथ देते हैं और दुःख अकेले ही झेलना होता है ..

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  7. दुनिया की रीत को समझा दिया ...रोने वाले के साथ कोई नहीं होता .....कटु सत्य

    --

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  8. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द दिल को छू गई! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! इस उम्दा रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!

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  9. "हंसती हूँ तो लोग शामिल भी कर लेते हैं
    रोई हूँ जब तक कतरा कर निकल गए।"

    अत्यंत मार्मिक एवं सच्चाई में सनी कविता.मनोभावों का अत्यंत सुन्दर चित्रण.

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  10. बड़ी खूबसूरत रचना. "तुम्हारे साथ रोने कोई नहीं आता।" यह तो कटु सत्य है.

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