शनिवार, 20 अगस्त 2011

अन्ना की आंधी !









आज फिर आज़ादी जैसा जूनून भरा है मन में ,
ऐसा ही जोश छलक छलक रहा है जन जन में।

नहीं खबर है उनको इसकी कि दिन है या रात ,
पीछे तुम्हारे चलना है बस यही मन में एक बात।

गाँधी का प्रतिरूप मान कर साथ है आपके जनमानस,
उनके जैसे कदम बढे तो साथ हो चला ये जनमानस।

बौखलाहट में उनको अब नहीं कुछ भी सूझ रहा,
उबल बड़ा है राष्ट्र एकदम जो मनमानी से जूझ रहा।

ज्वालायें अब थाम चुके हैं प्रतिरोध की हाथों में ,
संघर्ष की माटी का तिलक लगा अपने माथों में।

यह जो जंग छिड़ी है तो अब परिणाम तक जानी है।
दिवस , माह औ' वर्षों तक चलाने की ही ठानी है।

बालक , युवा औ' वृद्धों ने अब मशाल थामी है,
जो हैं अशक्त तन से उनकी भी इसमें हामी है।

वे इतिहास दुहरा नहीं फिर से बना रहे नया हैं ,
पर मिट्टी में मिल जाने का इतिहास वही रहा है।

बचा नहीं पायेगा उनका धन भंडार अकूत,
मान प्रतिष्ठा डूब गयी तो क्या करेगा भूत।

वर्तमान में मांग यही है बस कुचले भ्रष्टाचार ,
पालकों को उसके सिखा ही देंगे ये है सदाचार .

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर समसामयिक प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  3. सामयिक ... जोश भरी ... अब तो ये आंधी मुकाम पर पहुँच कर ही रुकनी चाहिए ...

    जवाब देंहटाएं
  4. ओजस्वी रचना. अच्छा लगा. अब भी कुछ न हुआ तो सचमुच एक बड़ी क्रांति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा. आशा है शासक वर्ग चेतेगा.

    जवाब देंहटाएं