शुक्रवार, 11 जून 2010

एक अंतहीन इन्तजार...........!

इन्तजार
किसी अच्छे पल का
कितना मुश्किल होता है?
लगता है
ठहर गयी काल की गति
सुइंयाँ रुक गयीं
सूरज और चाँद भी
रुक गए हैं
किसी इन्तजार में.
बयार गगन में सहमी सी
किसी संकेत के इन्तजार में
अधर में लटकी सी
त्रिशंकु बनी है.
और हम
सांस थामे
देख रहे हैं
ऐसे काल परिवर्तन की राह
जिस काल में
रामराज्य हो न हो
महाभारत सा 
अपमान, षडयंत्र औ'
विनाश न हो ,
जहाँ गीता के उपदेश
सिर्फ पांडवों को
समझ आते हैं,
कौरवों की सेना तो
सिंहासन की  चकाचौध में
जय हो, जय हो,
के साथ अनुगामी बनी है.
वह परिवर्तन
सोचते हैं
पतझड़ हो कुविचारों की
विचारों में क्रांति हो.


और नव पल्लव की तरह
सुरचिता अपने नव रूप में
बसंत सी खिल उठे.

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्रभावी कविता...आखिर ये इंतज़ार कब ख़त्म होगा...या अंतहीन ही रह जायेगा.

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  2. कहते है ना की इंतजार का फल हमेशा मीठा होता है , और इंतजार का अपना मज़ा . परिवर्वन को परिवर्तन कर लीजिये . और अगर धरती पर कौरव रूपी अधर्मिता ना विद्यमान हो तो गीता का क्या काम और पांड्वो का क्या काम. अंतहीन इंतजार , एक सुविचार .

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  3. अब ये अंतहीन इंतज़ार है तो सच ही अंतहीन ही रहेगा....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है


    http://charchamanch.blogspot.com/

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