हर अश्क ने लिखी एक अलग इबारत है,
इन अश्कों की जुबानी भी क्या कहिए ?
कुछ में बसी है कसक अनदेखे जख्मों की,
इस अहसास में छलके तो क्या कहिए ?
ज़ख्मों की कसक हो अपनी जरूरी तो नहीं,
दर्द किसी का,अश्क हों अपने क्या कहिए?
कुछ पन्ने अतीत के खुलते ही छलक गए ,
क्या कहाँ चुभा निकले आँसू क्या कहिए?
कहीं बैठ अकेले अपनों से दूरी की यादें,
छलक गयीं बरबस आँखें क्या कहिए?
कुछ बिछड़ गये कह न पाये दिल की अपने,
उन यादों में छलके अश्कों का क्या कहिए?
रेखा श्रीवास्तव