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रविवार, 9 जून 2024

वक्त की पतंग

 वक्त की पतंग!


ये वक्त

पतंग सा

ऊँचे आकाश में,

चढ़ता ही जा रहा हैं।

डोर तो हाथ में है,

फिर भी

फिसलती ही जा रही है,

कोई मायने नहीं,

कि चर्खी कितनी भरी है?

जब पतंग पर काबू नहीं,

पता नहीं डोर कब छूट जाये?

पकड़ कभी मजबूत नहीं होती,

बस एक दिन तो छूट जाना है।

समय आना तो एक बहाना है।