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रविवार, 9 जून 2024

वक्त की पतंग

 वक्त की पतंग!


ये वक्त

पतंग सा

ऊँचे आकाश में,

चढ़ता ही जा रहा हैं।

डोर तो हाथ में है,

फिर भी

फिसलती ही जा रही है,

कोई मायने नहीं,

कि चर्खी कितनी भरी है?

जब पतंग पर काबू नहीं,

पता नहीं डोर कब छूट जाये?

पकड़ कभी मजबूत नहीं होती,

बस एक दिन तो छूट जाना है।

समय आना तो एक बहाना है।


4 टिप्‍पणियां:

आलोक सिन्हा ने कहा…

सुंदर

Rupa Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना।

नूपुरं noopuram ने कहा…

अलविदा कहने के बहाने तो चाहिए ही, वो भी जुदा-जुदा. याद दिलाने के लिए शुक्रिया.

Harsh Wardhan Jog ने कहा…

सुन्दर