अभी तक
ये समझ नहीं आया
कैसे लोग
रिश्तों को लिबास की तरह
बदल लेते है ?
कुछ रिश्ते
जो खून में घुले होते हैं
माँ से जुड़े होते है
रगों में वे
खून को पानी में
बदल लेते हैं?
कहते हैं जिन्हें
वे दिल के रिश्ते हैं
समझ आते हैं
लेकिन फिर ऊब कर
उनसे भी
किसी और को
अजीज बना लेते हैं
और
उसी रिश्ते में
कैसे बदल लेते हैं?
ये रिश्ते हो चुके हैं
अब शतरंज के मोहरों की तरह
दूसरों की जगह पर
रखते हैं नजर
औ'
अपने खाने जरूरत पर
बदल लेते हैं?
एक की जगह लेने को
हर मोड पर
दो दो खड़े हैं
जरूरत पड़ी तो
चेहरे की रंगत को भी
बदल लेते हैं?
बुधवार, 7 सितंबर 2011
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15 टिप्पणियां:
एकदम सही कहा है
बिल्कुल शतरंज की मोहरों की तरह?
"दूसरों की जगह पर
रखते हैं नजर
औ'
अपने खाने जरूरत पर
बदल लेते हैं?
"
दीदी ,प्रणाम.यह तो आप भी जानती हैं कि जब कोई मर जाता है तो उसका खून पानी हो जाता है.यही बात रिश्तों के भी साथ है,आजकल लोगों से पहले रिश्ते ही मर जाते है.इनकी उम्र काफी कम हो गई है.
ये रिश्ते हो चुके हैं
अब शतरंज के मोहरों की तरह
दूसरों की जगह पर
रखते हैं नजर
औ'
अपने खाने जरूरत पर
बदल लेते हैं....
पर छुट्टियों के मध्य भी कुछ रिश्ते खींचते हैं अपनी तरफ .... जहाँ एहसास है , वहीँ रिश्ता है और वह नहीं बदलता
हाँ भाइ, आजकल रिश्ते सिर्फ स्वार्थ के लिए रह गए हैं , सही कहाँ खून पानी मौत के बाद होता था अब जब पानी हो जाये तो समझ लो कि रिश्ता मर गया
samvedansheel kavita
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
कैसे लोग
रिश्तों को लिबास की तरह
बदल लेते है ?
-यही तो समझ के परे है...उम्दा रचना,
good one rekha
बहुत ही अच्छी रचना रेखा जी...बधाई
नीरज
rishto ka aajkal yahi chaal-chalan hai.
सटीक विश्लेषण किया है।
रिश्ते जब तक निभ जाएँ ठीक है .. अच्छा विश्लेषण किया है .
बदलते वक्त के बदलते रिश्ते.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क
सही से हर रिश्ते को परिभाषित किया आपने
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