मैं भाव हूँ
उमड़ता हूँ तो छा जाता हूँ
काले बादलों सा,
बरसता हूँ तो भी छा जाता हूँ
कागजों पर स्याही के संग
कलम पर सवार होकर
देखा होगा आपने?
पीड़ा भी हूँ,
और उल्लास भी
रुदन हूँ औ' हास भी,
अपना भी हूँ औ' दूसरे की भी
बस अपना समझ जिया उसको,
गरल बन पिया उसको,
जीवन में कुछ नया कर गया,
देखा होगा आपने?
मैं शब्द हूँ,
उमड़ता हूँ दिमाग में
कभी कल्पना से,
कभी साक्षी बनने से
कभी तो भोक्ता भी होता हूँ,
ढल जाता हूँ -
कभी कविता में,
कभी कहानी में
उतर कर कागजों पर रच जाता हूँ।
देखा होगा आपने?
बस इसीलिए तो हर रूप में स्वीकृति हूँ,
पीड़ा, भाव और शब्दों की अनुकृति हूँ।
बहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंवाह , भाव --- कभी है कभी त्रास लाजवाब लिखा है आपने ।
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बेहतरीन सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेखन दी
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
आभार..
पीड़ा भी हूँ,
जवाब देंहटाएंऔर उल्लास भी
रुदन हूँ औ' हास भी,
वाह!!!
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब ।
बेहद भावपूर्ण सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब👌👌
जवाब देंहटाएंआप संभी का आभार , मेरी रचना तक आने के लिए।
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