दिन में रात
आँधी औ बरसात
माह कौन रे।
***
दहशत में
जीवन हैं हमारे
कोरोना मारे ।
***
बंद घर में
साँस भी घुटती है
जाँ अधर में।
***
वो दिखते है
एक रोबोट जैसे
बचाये कैसे ?
***
दीप जलाये
बैठी है उसकी माँ
साँसत में जाँ।
***
वो कर्मवीर
खड़े हैं सीना तान
बचा लें जान।
***
आँधी औ बरसात
माह कौन रे।
***
दहशत में
जीवन हैं हमारे
कोरोना मारे ।
***
बंद घर में
साँस भी घुटती है
जाँ अधर में।
***
वो दिखते है
एक रोबोट जैसे
बचाये कैसे ?
***
दीप जलाये
बैठी है उसकी माँ
साँसत में जाँ।
***
वो कर्मवीर
खड़े हैं सीना तान
बचा लें जान।
***
बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार ब्लॉग पर आने के लिए ।
हटाएंसुंदर और सारगर्भित।
जवाब देंहटाएंआभार पंसंद करने के लिए।
हटाएंउम्दा
जवाब देंहटाएंबुजुर्गवार का आशीष चाहिए ।
हटाएंसारी पंक्तियां बेहद प्रभावित करने वाली हैं दीदी अगर मैं गलत नहीं हूं तो लेखन की इस कला को हाय को कहते हैं शायद
जवाब देंहटाएंनहीं हाइकु ही कहते हैं ।
हटाएंवाह, सुंदर। बधाई आदरणीया
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंसभी हाइकु बहुत भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंकहे हाइकु
जवाब देंहटाएंअभी यहाँ आपने
मन भाये हैं
वाआआह बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंउत्तर सही जगह नहीं आ रहे ।
जवाब देंहटाएंउत्तर सही जगह नहीं आ रहे ।
जवाब देंहटाएं