गुरुवार, 7 नवंबर 2019

फ़र्क से फ़र्क !

क्या बात है!
इन शब्दों को अक्सर सुना जाता है,
लेकिन
ये वाक्य जेहन में ही आता है,
जब वास्तव में कुछ फ़र्क पड़ता है।
अपने मन बदलने को,
औरों को दिखाने को,
टूट कर सिमटने के भ्रम में जीने को,
या
फिर उस दुख को जीने की हिम्मत बढ़ जाती है। 
क्या फ़र्क पड़ता है!
बहुत गहरा अर्थ रखता है।
फ़र्क पड़ने पर,
या कि 
एक रिश्ते की नींव दरकने पर,
किसी रिश्ते की चोरी पर,
साथ छूटने पर,
या
रिश्तों में औरों के विष बोने पर
फ़र्क पड़ता है।
हम किसको समझाते हैं,
हम किसको दिखाते हैं,
किस लिए डालते हैं,
एक झूठ का आवरण।
शायद खुद के लिए
क्योंकि
कोई और को वास्तव में कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।
सच स्वीकारो
हाँ हम वहाँ कहते हैं
कि
कोई फ़र्क नहीं पड़ता है!
जहाँ हम केवल इस फ़र्क को जीतते हैं।
इसमें घुला हुआ जहर भी पीते हैं।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    10/11/2019 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  3. परंतु फ़र्क तो पड़ता ही है।
    शुद्ध सरसों तेल में यदि जल की कुछ बूंद मिल जाए ,तो निश्चित ही फ़र्क पड़ता तेल की शुद्धता पर..
    तुरंत नहीं पर धीरे-धीरे।
    आपकी रचना उच्चकोटि की है, कभी मेरे ब्लॉग पर आकर अपना आशीर्वचन प्रदान करें।
    प्रणाम।

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  4. ...किसी और को वाकई
    कोई फ़र्क नही पड़ता है ।"

    वाह! बहुत बढ़िया।

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  5. आभार आप सभी को जिन्होंने ब्लॉग पर आकर पढ़ा।  हमारी यही इच्छा है कि हम पुनःअपने अपने ब्लॉग पर सक्रीय हों और दूसरों के ब्लॉग पर जाकर पढ़ें भी।  

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  6. गहन विचारों को प्रेषित करती सार्थक रचना।

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