बहुत याद आते हो तुम रोने को जब दिल करता है ,
पापा ऐसा क्यों लगता है ,साथ हमारे आज भी हो।
अपनी छाया में रखते थे ,अलग कभी भी नहीं किया ,
साया बन कर साथ चले थे ,साथ हमारे आज भी हो।
कलम मैंने पकड़ी थी दिशा उसे तुमने ही दिखलाई ,
मेरे शब्दों में अहसास बन, साथ हमारे आज भी हो।
अपने छोटे घर औ' बड़े से दिल में एक बड़ा संसार रचा ,
आज देखती हूँ घर को जब , साथ हमारे आज भी हो।
संवेदनाएं दी विरासत में पल पल उनको बोया मुझमें ,
आज वृक्ष बन खड़ी है मुझमें, साथ हमारे आज भी हो।
क्यों दूर अचानक चले गए , बिना मिले कुछ कहे बिना ,
फिर पापा ऐसा क्यों लगता है, साथ हमारे आज भी हो।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-06-2016) को "मौसम नैनीताल का" (चर्चा अंक-2379) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जो नहीं होते उनकी याद तो आती है हमेशा ... फिर पिता के सहारे ही तो चिंता मुक्त थे हम ... उनकी यादें कहाँ जाएँगी ...
जवाब देंहटाएंजिन्दगी में माता पिता की जगह कोई नही ले सकता |उनकी बाते उनकी यादे हमारे साथ ही रहती है ताउम्र
जवाब देंहटाएंजिन्दगी में माता पिता की जगह कोई नही ले सकता
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