जीवन में बिखरे धूप के टुकड़े और बादल कि छाँव के तले खुली और बंद आँखों से बहुत कुछ देखा , अंतर के पटल पर कुछ अंकित हो गया और फिर वही शब्दों में ढल कर कागज़ के पन्नों पर. हर शब्द भोगे हुए यथार्थ कीकहानी का अंश है फिर वह अपना , उनका और सबका ही यथार्थ एक कविता में रच बस गया.
गुरुवार, 11 सितंबर 2014
हाइकू !
नवरात्रि में
कन्या पूजन किया
फिर की हत्या .
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या देवि कहो
या फिर देखो उसे
भोग्या का रूप .
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पूजिता तो है
वह हर हाल में
जननी है वो.
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तुम जन्म दो
हम पालेंगे उसे
हमें दे देना।
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जिस घर में
पसरा है अँधेरा
बेटी जन्मी है।
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सार्थक हायकु।
जवाब देंहटाएंसार्थक हायकु।
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