सोमवार, 8 सितंबर 2014

ऐसा भी होता है !

कितने अजीब 
होते हैं ये भाव 
मन में उमड़े बादल से 
जल्दी से उठी 
सोचा दर्ज कर लूँ ,
कागज और कलम 
जब तक हाथ में आई 
वो कपूर की तरह 
काफूर चुके थे। 
बहुत सोचा 
वो शब्द क्या थे ?
वो बात क्या थी ?
शब्दों में से कोई एक 
पकड़ में नहीं आया 
और फिर 
कलम रख दी। 
कुछ  लिखने को था ही कहाँ ?

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