सोमवार, 2 जून 2014

हाइकू !

हाइकू !
माँ बेटों को थी
आँचल में छिपाए
तपती रही।
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रिश्तों का दीप
स्नेह मांगता ही है
जलेगा कैसे?
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उदास मन
खामोश थी कलम
लिखूं तो कैसे ?
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जंग जीतना
आसान नहीं होती
उसूलों की हो।
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