रविवार, 25 अगस्त 2013

हाइकू !

 रोज पढ़ती हूँ कि मौत ने घर चिराग बुझा दिया , कोई लहरों में समां गया , कितनों की मांग सूनी हो गयी , असाध्य रोग से परेशान ने मौत को गले लगाया . किसी ट्रक ने किसी को कुचल कर बच्चों के मुंह से निवाला  छीन लिया और न जाने क्या क्या ? बस ये शब्द ऐसे परिभाषित हो उठा और  हाइकू के रूप में ---

मौत 
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मौत किसी की 
बरबादी होती है 
एक घर की। 
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मौत होती है 
किसी सुहागन की 
उजड़ी मांग। 
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इसके आते 
मुक्ति होगी कष्टों से 
राहत देगी। 
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उसकी मौत 
किसी को बोझ से ही 
मुक्ति मिलेगी। 
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अकाल मृत्यु 
भटकती आत्मा का 
वनवास है। 
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महलों में से 
सड़क पर आते 
ऐसे भी देखा। 
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कुछ मुस्कराए 
कुछ ने आंसू गिराये 
वह तो गया। 
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श्मशान में ही
विरक्ति बसती है 
जीते सभी है। 
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मौत तो है ही 
जिन्दगी की मंजिल 
पाना है इति। 
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