निरंकुश वे
छटपटाते हम
हल कहाँ है?
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फांसी का फन्दा
एक की गर्दन में
बाकी को तो दें ।
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गोद में कन्या
दरवाजे बंद हैं
जाए वो कहाँ?
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घरेलू हिंसा
हर घर में जिन्दा
चीख सुनें तो .
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आधी आबादी
आज भी आधी जिए
पूरी न होगी .
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अहंकार है
फिर विद्वता कहाँ?
सोचो तो जरा.
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माथे चन्दन
गले में धारे हार
पंडित बने .
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