शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

माँ एक अहसास !

 
चित्र गूगल के साभार 
माँ
एक भाव
एक अहसास है,
वह अपने अंश से
आत्मा से जुड़ी 
उसकी हर सांस से जुड़ी 
जैसे गर्भ में रखते समय 
उसके हर करवट और 
हर धड़कन को सुनकर 
कितना उत्साहित होती है।
फिर जिसे जन्म देती है ,
तो सीने से लगा कर 
उसकी गर्माहट से 
अपने गर्भकाल की 
और प्रसव पीड़ा को 
भूल जाती है।
कहीं दूर से ही सही 
अपने अंश की 
कांपती आवाज 
या फिर उसकी भीगी आंखों का 
एक उदास अहसास 
उसके अंतर को 
हिला ही तो  देता है।
फिर कैसे कोई माँ 
अपने अंश को 
एक कपडे में लपेट कर 
कूड़े के ढेर पर फ़ेंक सकती है।
वो यतीम तो नहीं होता 
जिसने भी फेंका होगा
कोई अपना ही होगा
फिर 
किसी अपने की आत्मा 
इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है?
क्या माँ और अपनो के अहसास 
मरने भी लगे हैं, 
या फिर औरों की आँख की किरकिरी को 
पालने और आँचल की छाँव देने का 
साहस कहीं खो गया? 
माँ का अहसास कभी मरता तो नहीं,
फिर क्या हुआ ?
फिर क्या हुआ? 
सड़क पर पड़ी 
बच्ची की लाश पूछ रही है,
इसका उत्तर कौन देगा ?
समाज?
परिवार ?
माँ ?
या फिर 
वो आत्मा जो चली गयी .

7 टिप्‍पणियां:

  1. निःशब्द गात,अंग-प्रत्यंग....कहाँ कौन है कहने को, रुदन है सिर्फ रुदन है

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  2. न जाने क्या बिताती होगी उस माँ पर ...बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...

    फिर कैसे कोई मान
    अपने अंश को ... मान की जगह माँ कर लें

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  3. भावमय करते शब्‍दों का संगम ...

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  4. संगीता गलती सुधरवाने के लिए धन्यवाद ! आख़िर गुरु हो मेरी.

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  5. जिम्मेदार सभी हैं
    समाज से शुरु होकर
    हम तक अगर माने तो
    संवेदनाऎं भी बनाने लगी
    हैं अब तो बाजार एक
    बहुत है समझाने को !

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  6. उत्तर देगा अल्ट्रा साउंड या देगा कोई लम्पट ,

    हुए कमीने कई यहाँ पर अन्दर बाहर सीना ताने .,

    घूम रहे कितने मस्ताने .

    खुले हुए सबके दस्ताने ,

    पहन बघनखे खून सने ये ,घूम रहें हैं ,
    कुछ सुस्ताने .

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