चित्र गूगल के साभार |
एक दीप लिए आशा का
अनजाने से रास्तों पर
बिना सहारे वो
चल ही तो पड़ी है।
वाकिफ नहीं है ,
यहाँ के काँटों और रोड़ों से
नंगे पाँव चली है।
दीप भरे
ह्रदय के स्नेह से
आंधी या तूफानों से
डर नहीं लगता उसको
न स्नेह कम होगा
न दीप कभी बुझेगा .
रास्ता किसको दिखने चली है?
ये जब पूछा उससे
तो बोली -
'पता नहीं कितने बेटे, भाई और काका
अँधेरे में भटक रहे हैं,
अनजाने और अँधेरे में
खुद को ही कुंएं में धकेल रहे हैं।
सोचा उन्हें राह दिखा दू,
पता नहीं कब चल दूं?
किसी बेटे भाई और काका की
गोली, लाठी या बम
मेरा सफर न पूरा कर दे,
भटकूंगी फिर भी
सो जाने से पहले ये काम कर लूं
फिर न रही तो क्या
उनके रास्ते तो बदल जायेंगे
और फिर
कोई और दीप जलाये आएगा
ऐसे ही रास्ते दिखायेगा
होगा कोई मानव ही
जो मानव को दानव से
महामानव बनाएगा। '
एक छोटी सी आशा ...इस जीवन को मार्ग दिखाती हैं ..
जवाब देंहटाएंऐसे ही रास्ते दिखायेगा होगा कोई मानव ही जो मानव को दानव से महामानव बनाएगा।
जवाब देंहटाएं.....गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति !
ऐसे ही रास्ते दिखायेगा होगा कोई मानव ही जो मानव को दानव से महामानव बनाएगा।
जवाब देंहटाएं.....गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति !
जाने कब वो दिन आएगा जब मानव दानव से महामानव बन जायेगा।
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
waah kya baat hai. sandesh dene ka uddeshy poorn karti kavita.
जवाब देंहटाएंजीवन उद्देश्यपूर्ण ही होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंaasha hi jeevan hai..:)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रेखा जी hindigen पर आपकी कवितायेँ पढी अच्छी लगी , बेहतरीन भावो को सुन्दर शब्दों से परिभाषित किया है आपने प्रत्यें कथ्य को . अच्छी कविता के लिए बधाई , आपके और ब्लॉग भी अच्छे
जवाब देंहटाएंकुश्वंश जी, बहुत बहुत धन्यवाद , इसी तरह से स्नेह बनाये रखें. आभारी रहूंगी.
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