शब्दों पर पहरे,
कलम पर पहरे,
कहाँ देखे?
किसने देखे?
उसके जख्म गहरे .
जुबां वह बोले
जो उन्हें पसंद हो,
जो उनके अहम् को
बनाये रखने का अनुबंध हो।
फिर क्या समझे ?
एक रोबोट ही न
काम सारे , दायित्व सारे,
अधिकारों पर प्रतिबन्ध हो।
क़ानून बने और बनते रहेंगे,
इस चारदीवारी में
वही क़ानून और वही दंड है।
अकेले बंद कमरे में
वह क्यों चढ़ जाती है फांसी ?
कोई गला घोंटे भावनाओं और संवेदनाओं का
अहसास में जीती रहे
जीवन एक अहसान है
तो क्यों न?
उससे खुद को मुक्त कर लूं,
इस अहसास से
जैसे चुपके चुपके
जीवन में
अपनी वेदनाओं को
कागजों पर लिखती रही
कुछ बोझ हल्का किया
लेकिन शब्दों के प्रतिबन्ध ने
कलम के अनुबंध ने
मजबूर कर दिया
औ'
चिंदी चिंदी कर
छत से हवा में उडा दिया।
उस पल तक का बोझ
उतर गया,
दिल हल्का कर गया।
ऐसे कितने बोझ
उतारती रही ,
ढोती रही,
फिर आखिर कब तक?
साहस कर लिया बगावत का
लेकिन किससे बगावत?
अपनी जिन्दगी से
और झूल गयी फांसी,
सारे प्रतिबंधों - अनुबंधों से मुक्त
उन्मुक्त जीवन जीने को
फिर आएगी एक बार
कैसे जिया जाता है जीवन
फिर जीकर देखेगी
जब सारी भावनाएं, वेदनाएं और संवेदनाएं
सब अपनी होंगी
उन्हें सहेजने को
शब्द अपने होंगे.
उन्हें सहेज कर
और वह खुल कर जियेगी
अतब वह मुक्त होगी
मुक्ति उसका अधिकार।
कलम पर पहरे,
कहाँ देखे?
किसने देखे?
उसके जख्म गहरे .
जुबां वह बोले
जो उन्हें पसंद हो,
जो उनके अहम् को
बनाये रखने का अनुबंध हो।
फिर क्या समझे ?
एक रोबोट ही न
काम सारे , दायित्व सारे,
अधिकारों पर प्रतिबन्ध हो।
क़ानून बने और बनते रहेंगे,
इस चारदीवारी में
वही क़ानून और वही दंड है।
अकेले बंद कमरे में
वह क्यों चढ़ जाती है फांसी ?
कोई गला घोंटे भावनाओं और संवेदनाओं का
अहसास में जीती रहे
जीवन एक अहसान है
तो क्यों न?
उससे खुद को मुक्त कर लूं,
इस अहसास से
जैसे चुपके चुपके
जीवन में
अपनी वेदनाओं को
कागजों पर लिखती रही
कुछ बोझ हल्का किया
लेकिन शब्दों के प्रतिबन्ध ने
कलम के अनुबंध ने
मजबूर कर दिया
औ'
चिंदी चिंदी कर
छत से हवा में उडा दिया।
उस पल तक का बोझ
उतर गया,
दिल हल्का कर गया।
ऐसे कितने बोझ
उतारती रही ,
ढोती रही,
फिर आखिर कब तक?
साहस कर लिया बगावत का
लेकिन किससे बगावत?
अपनी जिन्दगी से
और झूल गयी फांसी,
सारे प्रतिबंधों - अनुबंधों से मुक्त
उन्मुक्त जीवन जीने को
फिर आएगी एक बार
कैसे जिया जाता है जीवन
फिर जीकर देखेगी
जब सारी भावनाएं, वेदनाएं और संवेदनाएं
सब अपनी होंगी
उन्हें सहेजने को
शब्द अपने होंगे.
उन्हें सहेज कर
और वह खुल कर जियेगी
अतब वह मुक्त होगी
मुक्ति उसका अधिकार।
खूबसूरत अन्दाज़ भावाव्यक्ति का
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना......
जवाब देंहटाएंयही अनुबंध तो पूरा जीवन बांधे रहते हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकल 03/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंश्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकागजों पर लिखती रही
जवाब देंहटाएंकुछ बोझ हल्का किया
लेकिन शब्दों के प्रतिबन्ध ने
कलम के अनुबंध ने
मजबूर कर दिया
औ'
चिंदी चिंदी कर
छत से हवा में उडा दिया।
bahut pyari panktiyan di...
ek dam dil ko chhuti hui...
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंविचारोत्प्रेरक रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंरेखा श्रीवास्तव जी आपका आपका यह लेख बहुत ही रोचक है, इसके बारे में शब्दनागरी (http://shabdanagari.in/post/33591/-pratibandh-2313712) पर आपके पेज पर पढ़ा और फिर सर्च करके आपके इस ब्लॉग तक आ गया. वाकई काफी दिलचश्प है आपका यह लेख. बहुत ही अच्छे शब्दों का प्रयोग आपने किया.
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