मंगलवार, 24 जुलाई 2012

हाइकू !

आशा का दीप 
जलने जा रहा है 
प्रतीक्षा करो 
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मशाल जली 
दो हाथों से थाम लो 
सफल होगे।
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 उदास  गीत 
सिसकती ग़ज़ल 
क्या गायें हम ?
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मनन कर 
मौन आत्मा से माँग 
अच्छा मिलेगा।
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देवता क्यों  
इंसान ही रहो न 
बहुत होगा। 
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जननी होना 
अभिशाप बना है 
सड़क मिली। 
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पत्नी रहते 
छत होती ऊपर 
अपना घर। 
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माँ बन कर 
अभिशप्त हो गयी 
घर न द्वार . 
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विश्वास टूटा 
बिखर गए हम 
अकेले अब 
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8 टिप्‍पणियां:

  1. जननी होना
    अभिशाप बना है
    सड़क मिली।

    सच्चाइयों को उकेरती हाइकू।

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  2. बेबाकी से सच बयान करते हाइकू ...
    लाजवाब ...

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  3. उदास गीत
    सिसकती ग़ज़ल
    क्या गायें हम ?
    जननी होना
    अभिशाप बना है
    सड़क मिली।
    हमेशा की तरह भावमय करती पंक्तियां ... आभार

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  4. बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण हायकू..

    सादर
    अनु

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  5. आज 26/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. रेखा जी कमाल के हाइकू लिखे हैं आपने ...!!
    बहुत सुंदर भाव संयोजन भी ......!!

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