सोमवार, 16 अप्रैल 2012

हाईकू !

कभी कुछ मन नहीं करता है और कलम उतावली होती है पेज रंगने को क्योंकि उसमें तो भाव भरे होते हें फिर ऐसे ही रच जाती है कुछ हाईकूपहली बार लिखा है सो क्षमा याचना के साथ


ईमान बेचा
खरीदार तो होगा
पाक साफ है.
* * *
अपने छूटे
सारे भ्रम ही टूटे
अकेले अब .
***
दर्द छलका
आँखें बोल रही थी
खामोश जुबां.
***
दुर्जन कौन
सफेद कपड़ों में
काले मन का.
***
धरा उदास
आसमान से झाँका
सुनसान था
***
दीप जलाया
रोशनी फैलेगी तो
बाती रो पड़ी
***

11 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द छलका
    आँखें बोल रही थी
    खामोश जुबां.
    ***
    दुर्जन कौन
    सफेद कपड़ों में
    काले मन का.
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. आंटी!
    बहुत अच्छे लगे आपके हाइकु।

    सादर

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  3. दुर्जन कौन
    सफेद कपड़ों में
    काले मन का.
    इस विधा का कमाल यही है कि कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह सकने की कला विकसित होती है।

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  4. सभी हाइकू शानदार हैं। सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. कम शब्दों में गहरी बात।
    हाइकू करते हैं मन पर सीधा असर!

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