गुरुवार, 4 अगस्त 2011

आह्वान !

सृष्टि का आधार हो तुम
इस जगत की पालनहार हो तुम
तुम्हें नमन करूँ
फिर भी ये तो कहना ही है ----
तुम शांत धीर गंभीर
सरिता सी शीतल
आँचल में छिपाए
दर्द दुनियाँ का
रोज मरती हो सौ सौ बार
इस तरह शांत रहो
कुछ तो कहो
हो तुम सागर सी विशाल
तट फैला कर मीलों तक
संहारिणी भी बनना सीखो
काँप जाए हाथ उनके
थर्रा उठे आत्मा उनकी
विवश बेचारी मत बनो
कुछ तो कहो
सब कुछ कलुषित
तेरी लहरों में बिखरा कर
वे पवित्र हो गए
आँचल छू कर तेरा
कलुषित तुझे कर गए
फ़ेंक दो बाहर उन्हें
करो बगावत ऐसे लोगों से
अब शांत मत बहो
कुछ तो कहो
मूक नाद तेरा
मूक गिरा तेरी
मौन स्वीकृति मान कर
कर जाते हैं तिरस्कार तेरा
पापनाशिनी बनकर
मत समेटो त्याज्य उनका
तुम पवित्र हो गंगा सी
बोलो कुछ तो बोलो
अब इतना मत सहो
कुछ तो कहो

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सटीक आह्वान ! सच में जब तक नारी मूक हो सब सहती रहेगी उसे अबला मान उसके धैर्य को चुनौती दी जाती रहेगी ! ज़रूरत है कि वह पैरों में पड़ी अपनी बेड़ियों को तोड़ कर मुक्त हो जाये और अपने खोये हुए वर्चस्व को स्थापित करे ! बहुत प्रेरणादायी रचना !

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  2. तुम पापनाशिनी हो , तुम उसे सम्पूर्णता में निभाओ ...

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  3. bahut achchi lagi yah kavita.yesi sahansheelta ki bhi ek seema honi chahiye kanhi tumhara astitv hi na mit jaaye kuch to kaho.bahut achche bhaav.

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  4. बेहद सटीक एवं सार्थक अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

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  5. नारी के पूर्ण ...अस्तित्व का परिचय
    अबला...सबला ....प्रेम...ज्ञान भंडार ...तृप्ति ...शांति
    उद्वेगना ..सबके समावेश को लेकर लिखी गई रचना ....बहुत खूब
    --

    anu

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  6. दीदी,आज नारी अबला नहीं है.हाँ सबल होने की प्रक्रिया धीमी जरूर है पर गतिमान है.काफी बदलाव आया है पर घंटे की सुई की तरह उसकी गति को पढ़ पाना जरा मुश्किल है. बहुत दुन्दर और प्रेरक आह्वान.

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  7. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार प्रस्तुती! उम्दा पोस्ट!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  8. अपने अस्तित्व को बचाने का आह्वान अच्छा लगा .. सुन्दर प्रस्तुति

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  9. nahin rajeev bhai, nari ke sabala hone ki prakriya shuru to ho chuki hai lekin usake aatmnirbhar hone ke bad bhi vah shoshit hai. aaj bhi 60 pratishat mahilaayen isa kavita ke vishay se judi hain. kitni to aisi bhi hai. mook peeda ko kalam se vyakt to kar deti hain lekin phir maine dekha hai diary ke pannon ko hava men laharate hue aur unake shabdon ko kataksh banate hue..........

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