गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

क्या भूलूं क्या याद करूँ ?

जीवन के इस मुकाम पर
क्या भूलूं क्या याद करूँ?

कल की बात रही हो जैसे,
आँखों के बिखरे सपनों जैसे,
तैर रहे हैं सब मन दर्पण में,
लौटा दो ये किससे फरियाद करूँ?

समझ नहीं aआता है अब भी,
क्या भूलूं क्या याद करूँ?

मन में छिपा कर रख छोड़ा है,
यादों के तिनके तिनके को
नजर बचा कर झाँक लिया हैं,
क्यों नाहक कोई विवाद करूँ?

जीवन तो गुज़रा है झूले में,
क्या भूलूं क्या याद करूँ?

आँखों के सुंदर सपनों को
तुमने ही धुंआ धुंआ किया,
किससे पूछूं रास्ता इसका ,
फिर दुनियाँ से जेहाद करूँ?

 याद है हर मील का पत्थर
क्या भूलूँ क्या याद करूँ?

यादों के कुछ पैबंद बचे हैं
कुछ उजले कुछ धुंधले से,
गीतों के टुकड़ों में लिखे थे
पर अब कैसा प्रतिवाद करूँ?

जीवन दोराहे पर खड़ा है

क्या भूलूँ क्या याद करूँ?

24 टिप्‍पणियां:

  1. यादों के कुछ पैबंद बचे हैं
    कुछ उजले कुछ धुंधले से,
    गीतों के टुकड़ों में लिखे थे
    पर अब कैसा प्रतिवाद करूँ?



    बहुत भावमयी गीत ....मन की वेदना को कहता हुआ ..

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  2. rekha di...kuchh bloggers hi aise hain, jinhe maine sahitya ke har viddha me haath ajmate dekha..aap unme se ek ho..:)

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  3. यादों के कुछ पैबंद बचे हैं
    कुछ उजले कुछ धुंधले से,
    गीतों के टुकड़ों में लिखे थे
    पर अब कैसा प्रतिवाद करूँ?

    बहुत ही भावपूर्ण पक्तियां !
    संवेदना तार तार होकर मुखरित हुई है !
    साधुवाद !

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  4. जीवन दर्शन , जीवन में परिस्थितियों से समझौता और जीवन भर की खट्टी मीठी यादें . सब कुछ समाहित कर लिया आपने इस सुन्दर गेय कविता में .

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  5. यादों के कुछ पैबंद बचे हैं
    कुछ उजले कुछ धुंधले से,
    गीतों के टुकड़ों में लिखे थे
    पर अब कैसा प्रतिवाद करूँ?
    padhte padhte main kho gai... sach ke bhanwar mein utrane lagi, kya bhulun ???

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  6. यादों के कुछ पैबंद बचे हैं
    कुछ उजले कुछ धुंधले से,
    गीतों के टुकड़ों में लिखे थे
    पर अब कैसा प्रतिवाद करूँ?\
    बहुत भावमय पँक्तियाँ हैं। न भूलना न याद करना अपने वश मे है। शुभकामनायें।

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  7. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  8. नितांत व्‍यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है इसे हम उनकी इस कविता में देख सकते हैं ।

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  9. इन पंक्तियों के साथ तो बच्‍चन ही याद आते हैं तो उन्‍हीं के शब्‍दों में 'इसी उधेड़बुन में मेरा सारा जीवन बीत गया...'

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  10. "यादों के कुछ पैबंद बचे हैं
    कुछ उजले कुछ धुंधले से,
    गीतों के टुकड़ों में लिखे थे
    पर अब कैसा प्रतिवाद करूँ"

    भावमयी सुन्दर रचना
    बधाई

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  11. भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई |
    आशा

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  12. बहुत सुंदर जज़्बात. सुंदर सन्देश देती बढ़िया प्रस्तुती.

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  13. आँखों के सुंदर सपनों को
    तुमने ही धुंआ धुंआ किया,
    किससे पूछूं रास्ता इसका ,
    फिर दुनियाँ से जेहाद करूँ?....


    बहुत ही सुंदर कविता !और बहुत ही गहरे भाव !

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  14. अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी रचना ! प्रत्य्र्क शब्द मन को आंदोलित करता है और बोझिल कर जाता है ! सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !

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  15. मुकेश कोई कहेगा कि दुल्हे कौन सराहे दुल्हे का बाप यानि कि बहन कि बड़ाई अगर भाई ही करेगा तो लोग कहेंगे ही.

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  16. उस्ताद जी,

    बहुत दिनों बाद तशरीफ लाये हैं और वह भी रेटिंग नहीं की.

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  17. @ ॐ कश्यप जी,
    @डॉ. शरद सिंह जी,
    @राहुल जी,
    ब्लॉग पर पहली बार आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

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  18. मन में छिपा कर रख छोड़ा है,
    यादों के तिनके तिनके को
    नजर बचा कर झाँक लेते हैं,
    क्यों नाहक कोई विवाद करूँ?....

    बहुत अच्छी कविता।
    आपकी लेखनी को नमन.....

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  19. क्या भूलूँ क्या याद करूँ?


    -बहुत भावपूर्ण!!

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  20. गहरे मनोभाव समेटे मनभावन रचना...

    परन्तु जीवन का सच तो यह है कि

    "चंद यादों के सिवा हाथ न कुछ आयेगा
    उम्रे गुरेजां का न यूं पीछा कीजे"

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  21. सचमुच हम चाहकर भी कुछ नहीं भूल पाते हैं। अनचाहे ही सब याद आता है। गीत अच्‍छा है।

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