मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

क्या कर रहे हैं आप?

बहुत आसान है कीचड़ औरों पर उछालना,
छींटे से अपने दामन को क्यों रंग  रहे हैं आप?

इंसानियत नहीं है  तोहमत लगाना किसी पर,
बेकुसूर इस तरह से  भी कब बन  रहे है आप? 

वे गुनाह किये हैं ये किस्मत की बात थी,
गुनाहगार बताकर ये क्या कर रहे हैं आप?

अंगुली तो उठी है बेकुसूरों पर भी,
अपनी तरफ अंगुलियाँ क्यों उठा  रहे हैं आप?

बहुत गम है दुनियाँ में रोने के लिए,
दूसरों को ग़मगीन  क्यों बना रहे हैं आप ?

लफ्जों के तीर जहरीले बहुत होते हैं,
दूसरों को घायल उनसे क्यों कर रहे हैं आप? 

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर एवं सार्थक भाव लिए कविता .

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  2. बहुत अच्छे भाव लिए नज़्म को प्रस्तुत करने के लिए आभार।

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  3. ..बहुत बढ़िया कही आपने....सुंदर रचना

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  4. अंगुली तो उठी है बेकुसूरों पर भी,
    अपनी तरफ अंगुलियाँ क्यों उठा रहे हैं आप?


    अगर किसी पर उँगली उठायें तो चार अपनी तरफ ही उठती हैं अच्छी लगी रचना बधाई।

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  5. iss kyon ka jabab nahi hai di..?
    ham bhi sochte hain, even khud ke liye bhi...lekin khud tak ko badal nahi paye..!

    achchhi rachna

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  6. अंगुली तो उठी है बेकुसूरों पर भी,
    अपनी तरफ अंगुलियाँ क्यों उठा रहे हैं आप?
    अपनी और तो सवतः ही उंगली उठ जाती है , जाने दूसरो में क्या खामी खोजते है हम ,
    सुदर !
    साधुवाद !

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  7. बहुत गम है दुनियाँ में रोने के लिए,
    दूसरों को ग़मगीन क्यों बना रहे हैं आप ..

    सच है किसी दूसरे को गम नही देना चाहिए ... खुशियाँ बाँटनी चाहिए ,,,
    सुंदर भाव हैं ...

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