सोमवार, 6 दिसंबर 2010

तार तार शब्दों की गरिमा !

पूजा, दिव्या, वंदना, अर्चना, नमिता
तार तार कर दिया
इन शब्दों की गरिमा को,
खून के आंसूं रो रहे हैं
ये मानव जीवन के नमित  शब्द .
अरे छोड़ा तो नहीं
सीता, राधा, गिरिजा और सरस्वती को भी
जिन्हें हम घर और मंदिर में
प्रतिष्टित कर पूजते हैं.
ऐसे ही नहीं
रो रहा है हर शब्द,
मानव के नाम पर कलंक
इन विकृत मानसिकता वालों को
उनमें बेटी नजर नहीं आई,
कन्या नजर नहीं आई,
देवी नजर नहीं आई,
इन तीनों के ही रूप थीं -
वे मासूम बच्चियां.
अपनी माँ के आँचल से
अभी ही बाहर निकली थीं.
अरे निराधमों, दुराचारिओं
ये बताओ
क्या अपनी बेटी की भी
यही दुर्दशा करने की
हिम्मत और कुब्बत है तुममें
फिर जाओ और उन्हें भी
इसी तरह से अपनी अमानुषिक  मनोवृत्ति का
शिकार बनाओ और
छोड़ दो गला घोंट कर,
किसी का सिर तोड़ दो,
किसी को जिन्दा जला  दो,
बहुत से विकल्प हैं तुम्हारे आगे.
अरे शर्म नहीं आई,
कल तक बेटी बेटी कहकर
सिर पर हाथ फिराते  रहे,
टाफी, चाकलेट या आइसक्रीम देकर
कौन सा प्यार जता रहे थे?
ये वे नहीं जानती थीं.
इसके पीछे तुम्हारी मंशा क्या है?
वे तो पिता की तरह समझती रहीं,
और तुमने मौका देखकर
उनको रौंदकर मार दिया.
अब हर आदमी वहशी है,
अपनी बेटियों को क्या सिर्फ आँचल से विदा कर दें
या फिर पैदा होते ही,
फिर से गला घोंटने के इतिहास को दुहराने लगें.
अरे वहशियों इसका जवाब तुम्हें ही देना होगा.
नहीं तो खुद ही कालिख पोत कर
कहीं फाँसी पर लटक जाओ.
अगर सामने मानवता के आये
तो पत्थरों से मार दिए जाओगे.
लगता है कि इतिहास
फिर दुहराया जानेवाला है.
बीता कल फिर से आनेवाला है.

7 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे दरिंदों को जीती जागती इंसान नजर नहीं आतीं तो नाम क्या सुनाई देंगे .और कौन सी मानवता ?बची है क्या कहीं?

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  2. दरिंदगी का चेहरा बेनकाब किया है आपने . उफ़ ऐसे वीभत्स कार्यो के सजा के लिए मध्ययुगीन कानून भी कम पड़ेंगे .

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  3. आपका आक्रोश कविता में स्पष्ट है। यह आक्रोष जाज भी है। मानवता को शर्मशार करने वाले दरिंदों के लिए जितनी भर्त्सना के शब्द लिखे जाएं कम है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    विचार-प्रायश्चित

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  4. ऐसे दरिंदों को जो सजा मिले कम है...ना जाने कैसा जमीर होता है इनका जो इनको आवाज़ नहीं देता और ना ही बाद में शर्मिंदा करता है.

    आप की कविता में झलकता आक्रोश इनकी भत्सर्ना करने में सक्षम है. अच्छी प्रस्तुति.

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  5. ज्वलंत विषय है ...हर चौराहे पर यही हो रहा है ...मन का आक्रोश फूटा है इस रचना में ....

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