नव वर्ष के आते जाते ,
इस वर्ष कुछ ऐसा मनाएं,
संकल्पों के दशक बना लें.
दीप ऐसा एक मन में जला लें,
कलुष मिटाकर धवल बना लें.
दृढ स्तम्भ बने हम ऐसा
थाम जिसे निर्बल पल जाएँ.
ज्योति प्रेम की ऐसे चमके,
कटुता की कालिख मिट जाए.
एक धर्म की बात करें हम,
मानव ही मानव हो जिसमें.
अमन-चैन औ' खुशहाली में,
हर्षित हो जीवन दिन पर दिन.
बाँट सकें दुःख दर्द किसी का,
आँखों की हम नमी सुखा दें.
भटक गए जो कदम बहक कर,
उनको सही मार्ग दिखला दें.
सम्मान सभी को दें हम इतना,
हम भी इसके अधिकारी बन जाएँ.
समता का भाव रहे मन में,
मित्र शत्रु के भेद भुला दें.
चाहे जितने शूल हों पथ पर,
राहों को हम सुगम बनायें.
चाहूं बस इतना ईश्वर से भी,
इन संकल्पों को पूरा कर पायें.