मैं
कुछ इस तरह
मजबूर हुआ,
कि उठ नहीं सकता,
वक्त की मार कहूं
या तकदीर का सौतेलापन
कल तक
हाथ में हाथ लेकर
घूमते थे दोस्त मेरे
आज
कुछ इस तरह
गुजर जाते हैं,
जैसे पहचानते नहीं.
अरे सहारा नहीं माँगा
मुस्करा कर
एक नजर देख ही लेते
हम भी कुछ
सोच कर खुश हो लेते.
पर वे
सहारे के खौफ से
दूर से गुजार गए.
सही कहा है
वक्त साथ है
सब साथ हैं
नहीं तो
इंसां बस खाली हाथ है.
यूँ तो इंसान खाली हाथ आया है और खाली हाथ जायेगा ....पर जीवन में दोस्तों का साथ होता है हाथ में हाथ होता है ...इस तरह खौफ भला क्यों ?
जवाब देंहटाएंअच्छी भावाभिव्यक्ति ..
हाँ, संगीता ये हकीकत है, कभी कभी ऐसे भी दौर जिन्दगी में इंसां देखता है कि दोस्त ही नहीं बहुत अपने भी साथ छोड़ देते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंविचार-परिवार