मुझे दुहाई मत दो
उन रिश्तों की
जिन्हें ज़माने ने
अपना औ' सबसे अपना कहा है,
उनके दिए ज़ख्म
पैबस्त हैं सीने में,
गिनने बैठ जाऊं
तो
उँगलियों में छाले पड़ जायेंगे.
इससे बेहतर है,
उन्हें दफन ही रहने दो
जो खुशियाँ गैरों से
मिल रही हैं.
मुझे उनमें ही जीने दो.
सिर्फ प्रेम की नीव पर खड़े
इन रिश्तों में
कहीं स्वार्थ और अपेक्षा
नहीं होती,
नहीं दुखते हैं दिल कभी
औरों से मिले
दुःख दर्द बाँट लेते हैं.
तभी तो ये दुनियाँ
टिकी है इस दौर में भी,
नहीं तो
दुनियाँ मायूसों से भरी होती.
मुझे दुहाई मत दो
जवाब देंहटाएंउन रिश्तों की
जिन्हें ज़माने ने
अपना औ' सबसे अपना कहा है,
उनके दिए ज़ख्म
पैबस्त हैं सीने में,
गिनने बैठ जाऊं
तो
उँगलियों में छाले पड़ जायेंगे....
aur mujhe pata hai koi marham nahi lagata, balki uspe namak chhidak jata hai
सुन्दर भाव प्रवण रचना , अपनों के दिए जख्म पर सचमुच कोई मलहम प्रभावी नहीं होता है .
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत सुन्दर लगी!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंBahut khoob ... apno ke jakhm bharna aasaan nahi hota ...
जवाब देंहटाएंAchhee rachna hai ..
बिकुल यथार्थ बया करती सुन्दर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंयह रचना पढ़ कर मुँह से बस आह निकली...मन के छाले उँगलियों पर ....बहुत सटीक बात
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा..
जवाब देंहटाएंएक उम्दा रचना!
मुझे दुहाई मत दो
जवाब देंहटाएंउन रिश्तों की
जिन्हें ज़माने ने
अपना औ' सबसे अपना कहा है,
उनके दिए ज़ख्म
पैबस्त हैं सीने में,
गिनने बैठ जाऊं
तो
उँगलियों में छाले पड़ जायेंगे....
मरहम लगाता भी कौन है बस नमक छिडकते हैं। बहुत अच्छी लगी रचना शुभकामनायें।
धन्यवाद संगीता कि तुमने मेरी कविता को चर्चा के लिए चुना.
जवाब देंहटाएंसच में रिश्ते स्वार्थ की पोटली भर रह गए हैं.
जवाब देंहटाएंसुंदर सशक्त रचना.
बहुत भावपूर्ण रचना...बधाई..
जवाब देंहटाएंनीरज
गिनने बैठ जाऊं
जवाब देंहटाएंतो
उँगलियों में छाले पड़ जायेंगे....
बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना है, बेहतरीन!
देर से आने के लिए माफ़ी, कई दिनों से टूर पर था!
भरी भी और हरी हरी है दुनिया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद
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