गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

विकलांगों को समर्पित ये प्रशस्ति!

शायद क्रूरता है
ये उनके भाग्य की,
मानव तो बनाया
किंतु पूर्णता नहीं दी ।
या दी भी तो
जानकर छीन ली।
पर
जीवन तो जीना है,
एक चुनौती मानकर
असंभव कुछ भी नहीं
सक्षम और सशक्त
आत्मविश्वास से होते हैं।
नहीं तो
पूर्ण कहे जाने भी
सडकों पर रोते हैं।
उनको ये आत्मविश्वास
कुछ अपने ही देते हैं।
अशक्त समझ कर
उन्हें और अपाहिज मत बनाओ
हौसला बढाओ
साधनों से करो सक्षम
इतिहास वे रच जायेंगे।
कितने विकलांग
सुर्ख़ियों में आते हैं
क्या यों ही
नहीं जन्मदाताओं ने उन्हें
जीना सिखाया है,
मित्रों ने उन्हें
हौसला दिया है,
औ'
समाज ने उन्हें सराहा है।
तब ही तो वे
अपने अधूरे अहसास को भुलाकर
हम कहीं से भी
कमतर नहीं है।
इस जज्बे के साथ
अपनी विकलांगता को चुनौती
मानकर
सहर्ष स्वीकार कर
हमेशा आगे बढे हैं।
उनके कदम कभी
पीछे नहीं
आगे की मंजिलें ख़ुद तय करेंगे।
हम तो बस
उनकी कामयाबी पर फख्र करेंगे
और उनकी हिम्मत को दाद देकर
एक मानव के प्रति
एक मानव होने का फर्ज अदा करेंगे.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्रभावशाली रचना...ये कहीं से भी कम नहीं हैं.. इनकी लगन...आगे बढ़ने की चुनौती,इन्हें हमसे बहुत आगे ले जाती है...इन्हें केवल दरकार है,हमारे स्नेह,पहचान और अपनापन की.

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  2. बहुत सुन्दर रचना. वाकई विकलांगता अभिशाप तो नही शायद एक चुनौती है.

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  3. उनके भीतर का आत्मविश्वास कहीं से भी उन्हें हमसे अलग नहीं करता । प्रेरणा के पुंजीभूत प्रतीक हैं वह । समाज अपना दाय भाग पूरा करे-फिर उन्हें कौन रोक सकेगा !

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  4. हिमांशु जी से पूरी तरह सहमत..भावपूर्ण रचना.

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  5. बहुत ही सार्थक रचना । सुन्दर ।

    कृपया वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा दे, टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।

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  6. सक्षम और सशक्त
    आत्मविश्वास से होते हैं।
    नहीं तो
    पूर्ण कहे जाने भी
    सडकों पर रोते हैं।

    ye alfaaz kaafi kuchh keh jaane ke liye mukammil jaan padte haiN
    bahut hi achhee,,aahvaan karti kavita hai...

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